NATO ने शुरू किया Allied Underwater Battlespace Mission Network, Saab के साथ दुश्मन की पनडुब्बियों पर होगी पैनी नज़र

NATO ने समुद्री सुरक्षा को नई दिशा देते हुए एक बड़ा प्रोजेक्ट लॉन्च किया है. जिसका नाम है- Allied Underwater Battlespace Mission Network (AUWB-MN). इस मिशन नेटवर्क का लक्ष्य है समुद्र और पानी के नीचे (underwater) दोनों डोमेन में काम करने वाले crewed और uncrewed सिस्टम्स को आपस में जोड़ना और रीयल-टाइम सूचना साझा करने की क्षमता को मजबूत बनाना.
इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व स्वीडन की दिग्गज डिफेंस कंपनी Saab के नेतृत्व वाले MANGROVE कंसोर्टियम को सौंपा गया है.
1 सितंबर 2025 से यह प्रोजेक्ट औपचारिक रूप से शुरू हो गया है और आने वाले 12 महीनों में इसका Reference Architecture और Test & Reference Environment तैयार किया जाएगा.
क्यों जरूरी है यह प्रोजेक्ट?
बढ़ते पनडुब्बी खतरों और अंडरसी इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे ऊर्जा और कम्युनिकेशन केबल्स) पर हमलों की आशंका को देखते हुए यह प्रोजेक्ट काफी अहम है.
NATO के अलग-अलग सदस्य देशों के सिस्टम्स का एक-दूसरे से इंटरऑपरेट न कर पाना एक
NATO के सदस्य देशों (जैसे अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, तुर्की, इटली आदि) के पास अपनी-अपनी पनडुब्बियाँ, जहाज़, सोनार, ड्रोन और कम्युनिकेशन सिस्टम हैं.इन सबके सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर अलग-अलग मानकों (standards) पर बने हैं.
एक देश का sonar system किसी दूसरे देश की submarine communication system से सीधे डेटा शेयर नहीं कर पाता.
इसी वजह से रियल-टाइम सूचना साझा करना (real-time information sharing) और कोऑर्डिनेटेड ऑपरेशन करना मुश्किल हो जाता है.
यानी सीधी भाषा में कहे तो NATO के देशों के हथियार और टेक्नोलॉजी आपस में “plug-and-play” तरीके से काम नहीं करते.
AUWB-MN प्रोजेक्ट का मकसद यही है कि इन सबको एकीकृत (integrated) किया जाए ताकि चाहे जहाज़ अमेरिका का हो, पनडुब्बी फ्रांस की हो और अंडरवाटर ड्रोन जर्मनी का फिर भी सब एक ही नेटवर्क पर मिलकर काम कर सकें.
AUWB-MN से क्या बदलेगा?
NATO को एक डिजिटल अंडरवाटर बैकबोन मिलेगा, जिससे surface ships, submarines और autonomous systems आसानी से एक-दूसरे से संवाद कर पाएंगे.
Saab और इसके पार्टनर कंपनियाँ NATO के लिए एक सुरक्षित मिशन नेटवर्क तैयार करेंगी, जो anti-submarine warfare और maritime surveillance जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा.
यह प्रोजेक्ट आने वाले समय में समुद्री युद्ध की नई परिभाषा तय करेगा.
चुनौतियाँ भी कम नहीं
साइबर हमलों से बचाना इसकी सबसे बड़ी चुनौती होगी. इतना ही नहीं सदस्य देशों के बीच गोपनीय डाटा साझा करने पर राजनीतिक सहमति पाना आसान नहीं होगा. भले ही सभी देश नाटो के मंच पर एक साथ हो लेकिन डाटा शेयर करने को आसानी से राजनी नहीं होंगे. इन्फ्रास्ट्रक्चर और लगातार रख-रखाव की लागत भी एक बड़ा मुद्दा बनेगी.
NATO का AUWB-MN प्रोजेक्ट सिर्फ एक तकनीकी पहल नहीं, बल्कि आने वाले समय की समुद्री सुरक्षा रणनीति का अहम हिस्सा है. Saab-led MANGROVE की अगुवाई इस बात का संकेत है कि यूरोप और NATO अब underwater domain को उतनी ही प्राथमिकता दे रहे हैं जितनी उन्होंने पहले साइबर और स्पेस को दी थी.
यह प्रोजेक्ट अगर सफल होता है, तो NATO की Anti-Submarine Warfare क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी और समुद्री संतुलन पूरी तरह बदल सकता है.