Denmark ने शुरू की $8.5 अरब की रक्षा क्रांति, आर्कटिक में बढ़ेगा सैन्य प्रभाव और निगरानी क्षमता

Denmark ने अपनी सुरक्षा नीति में ऐतिहासिक बदलाव करते हुए $8.5 अरब (लगभग ₹71,000 करोड़) की नई रक्षा योजना की घोषणा की है. इस योजना का मुख्य उद्देश्य है — आर्कटिक और ग्रीनलैंड क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति को मज़बूत बनाना और रूस–चीन जैसी महाशक्तियों के बढ़ते प्रभाव का संतुलन बनाना.
डेनिश रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, इस निवेश से देश की नौसेना, वायुसेना और निगरानी प्रणालियों में बड़ा आधुनिकीकरण होगा. योजना के तहत डेनमार्क अब अत्याधुनिक युद्धपोतों, उन्नत ड्रोन सिस्टम्स, मिसाइल रक्षा नेटवर्क और Lockheed Martin के F-35 फाइटर जेट्स की नई खेप हासिल करेगा.
आर्कटिक पर केंद्रित है Denmark की रणनीति
आर्कटिक क्षेत्र आज न सिर्फ़ प्राकृतिक संसाधनों का केंद्र है, बल्कि यह वैश्विक सामरिक प्रतिस्पर्धा का नया मोर्चा भी बन गया है. रूस की बढ़ती पनडुब्बी गतिविधियों और चीन के वैज्ञानिक अभियानों ने यूरोपीय देशों को सतर्क कर दिया है.
डेनमार्क, जो ग्रीनलैंड के माध्यम से इस क्षेत्र में रणनीतिक स्थिति रखता है, अब उन्नत निगरानी और कम्युनिकेशन नेटवर्क तैयार कर रहा है, जिससे किसी भी सैन्य या तकनीकी घुसपैठ की पहचान पहले से हो सके.

Denmark की नाटो के भीतर भूमिका होगी और मज़बूत
विश्लेषकों के मुताबिक, यह रक्षा निवेश नाटो (NATO) के भीतर डेनमार्क की भूमिका को नई मजबूती देगा. यह योजना सिर्फ़ रक्षा उपकरणों की खरीद नहीं है, बल्कि एक “डिजिटल वॉर-रेडी इकोसिस्टम” तैयार करने की दिशा में कदम है, जिसमें स्थानीय उद्योगों और टेक कंपनियों को भी शामिल किया जाएगा.
मुख्य बिंदु एक नज़र में
- कुल निवेश: $8.5 अरब (₹71,000 करोड़)
- फोकस: आर्कटिक और ग्रीनलैंड की सुरक्षा
- मुख्य उपकरण: युद्धपोत, ड्रोन, F-35 जेट्स, मिसाइल डिफेंस सिस्टम
- रणनीतिक लाभ: रूस और चीन के प्रभाव की काट, NATO में बढ़ती अहमियत
क्यों अहम है यह कदम
डेनमार्क का यह निर्णय केवल उसकी सुरक्षा नहीं, बल्कि पूरे नॉर्डिक क्षेत्र के सैन्य संतुलन को प्रभावित करेगा. आर्कटिक में बढ़ती भू-राजनीतिक हलचल के बीच, यह कदम आने वाले दशक में यूरोप की सामरिक दिशा तय कर सकता है.