America की सीनेट ने पारित किया $925 बिलियन का ऐतिहासिक रक्षा नीति विधेयक
America की सीनेट ने एक ऐतिहासिक और भारी भरकम $925 बिलियन (लगभग ₹77 लाख करोड़) के रक्षा नीति विधेयक (Defense Policy Bill) को पारित कर दिया है. यह बिल अमेरिकी रक्षा तंत्र, सैनिकों के वेतन, सैन्य रणनीतियों और अंतरराष्ट्रीय रक्षा प्रतिबद्धताओं के ढांचे को तय करेगा.
क्या है America की इस नए रक्षा बिल में?
इस विधेयक को National Defense Authorization Act (NDAA) 2026 के रूप में पेश किया गया है.
बिल में निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल हैं —
- सैनिकों की तनख्वाह में 5.2% की वृद्धि की जाएगी.
- नई AI-based हथियार प्रणालियों और साइबर डिफेंस प्रोजेक्ट्स के लिए फंड आवंटित किया गया है.
- इंडो-पैसिफिक रीजन में सैन्य उपस्थिति बढ़ाने के लिए अतिरिक्त बजट निर्धारित किया गया है.
- यूक्रेन और इज़रायल को सैन्य सहायता जारी रखने का भी प्रावधान है.
अमेरिकी नौसेना के लिए दो नए Arleigh Burke-class destroyers और एक Columbia-class submarine के निर्माण को मंजूरी दी गई है.
राजनीतिक गतिरोध के बीच पास हुआ बिल

यह बिल ऐसे समय पारित हुआ है जब अमेरिकी कांग्रेस में बजट और शटडाउन को लेकर कड़ा विवाद चल रहा था. रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच तीखी बहस के बावजूद, बिल को दोनों दलों के समर्थन से मंजूरी मिली, ताकि सैनिकों के वेतन और आवश्यक रक्षा खर्चों में कोई रुकावट न आए.
सीनेट आर्म्ड सर्विसेज कमेटी के चेयरमैन ने कहा,
“यह बिल केवल एक बजट नहीं, बल्कि अमेरिका की वैश्विक सुरक्षा नीति का ढांचा है. इससे यह सुनिश्चित होगा कि हमारी सेनाएँ किसी भी खतरे के लिए तैयार रहें.”
साइबर और स्पेस डिफेंस पर विशेष ध्यान
इस बिल में खास फोकस साइबर सुरक्षा, स्पेस डिफेंस प्रोग्राम, और हाइपरसोनिक हथियारों के विकास पर है. अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि आने वाले दशक में रक्षा निवेश का बड़ा हिस्सा इन नई तकनीकों पर केंद्रित रहेगा.
विशेषज्ञों की राय
रक्षा विश्लेषकों के अनुसार, यह बिल अमेरिका की प्राथमिकताओं को साफ दिखाता है कि चीन के बढ़ते प्रभाव और रूस की आक्रामक नीतियों को देखते हुए अमेरिका अब अपने High-Tech Military Deterrence पर भरोसा बढ़ा रहा है. यह भी संकेत है कि अमेरिका 2030 तक अपने Global Force Projection को नए स्तर पर ले जाने की तैयारी में है.
$925 बिलियन का यह रक्षा विधेयक न केवल अमेरिकी रक्षा तंत्र को मजबूत करेगा, बल्कि दुनिया भर में उसकी सैन्य उपस्थिति को स्थिर बनाए रखने में भी मदद करेगा. इससे आने वाले वर्षों में अमेरिका-चीन रणनीतिक प्रतिस्पर्धा, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा, और साइबर-स्पेस डिफेंस में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.