13 साल बाद तुर्की-मिस्र की दोस्ती! पूर्वी भूमध्य सागर में पहला संयुक्त नौसैनिक और वायु अभ्यास

13 साल की कड़वाहट के बाद, तुर्की और मिस्र अब फिर से करीब आते दिख रहे हैं. दोनों देशों ने घोषणा की है कि वे 22 से 26 सितंबर 2025 के बीच पूर्वी भूमध्य सागर में अपना पहला संयुक्त नौसैनिक और वायु अभ्यास करेंगे. इस अभ्यास को नाम दिया गया है – “Friendship Sea (Bahr El Sadaka)”.
यह कदम न केवल सैन्य सहयोग का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति और शक्ति संतुलन में बड़े बदलाव का संकेत भी है.
क्यों है यह अभ्यास ऐतिहासिक?
2013 में मिस्र में सैन्य तख्तापलट के बाद तुर्की और मिस्र के रिश्ते टूट गए थे. पिछले एक दशक तक दोनों देश लीबिया, भूमध्य सागर और लाल सागर में प्रतिद्वंदी बने रहे.
अब हालात बदल रहे हैं. ऊर्जा सुरक्षा, गाज़ा युद्ध और लाल सागर की स्थिति ने दोनों देशों को साथ आने पर मजबूर किया है.
अभ्यास में क्या होगा?
तुर्की अपनी नौसैनिक ताक़त दिखाएगा – इसमें फ्रिगेट्स, तेज हमला करने वाले जहाज़, एक पनडुब्बी और F-16 लड़ाकू विमान शामिल होंगे. मिस्र अपनी नौसैनिक यूनिट्स के साथ भाग लेगा.
अभ्यास का उद्देश्य है समन्वय (coordination), संयुक्त ऑपरेशन और इंटरऑपरेबिलिटी को मजबूत करना.
अभ्यास के दौरान एक Distinguished Visitors Day भी होगा, जिसमें दोनों देशों के नौसेना कमांडर शामिल होंगे.
सामरिक मायने
क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में बदलाव
पूर्वी भूमध्य सागर (Eastern Mediterranean) पहले से ही ऊर्जा मार्गों और समुद्री विवादों के कारण संवेदनशील क्षेत्र है. तुर्की-मिस्र का मिलन कई देशों के लिए नई चुनौती होगा.
नए सुरक्षा ब्लॉक की संभावना
अगर यह सहयोग आगे बढ़ा, तो भूमध्य सागर से लेकर लाल सागर और उत्तरी अफ्रीका तक एक नया तुर्की-मिस्र सुरक्षा ब्लॉक बन सकता है.
भू-राजनीतिक संदेश
यह अभ्यास दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कल के दुश्मन, आज के दोस्त बन सकते हैं. तुर्की की Mavi Vatan (Blue Homeland) नीति और मिस्र की Suez Canal Gatekeeping Power मिलकर क्षेत्र में “रणनीतिक भूकंप” ला सकती हैं.
निष्कर्ष
तुर्की और मिस्र का यह अभ्यास सिर्फ़ एक सैन्य ड्रिल नहीं है, बल्कि भविष्य की साझेदारी की झलक है. यह कदम दिखाता है कि बदलते वैश्विक हालात में क्षेत्रीय शक्तियाँ अपने हितों के लिए नए गठजोड़ बना रही हैं.
पूर्वी भूमध्य सागर की राजनीति अब और भी दिलचस्प हो चुकी है – और इसका असर हिंद महासागर से लेकर यूरोप तक महसूस किया जाएगा.
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