भारत में अंतरिक्ष तकनीक का नया अध्याय: HAL को मिला SSLV तकनीक का ट्रांसफर

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में आज (10 सितंबर 2025) एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया. NewSpace India Limited (NSIL), इसरो (ISRO), IN-SPACe और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के बीच Small Satellite Launch Vehicle (SSLV) तकनीक ट्रांसफर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. यह समझौता बेंगलुरु में हुआ और इसे भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में हुए सुधारों की एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है.
क्या है SSLV?

SSLV को इसरो ने छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए एक तेज़-तर्रार, ऑन-डिमांड लॉन्च व्हीकल के रूप में विकसित किया है.
यह तीन चरणों वाला रॉकेट है.
इसकी क्षमता 500 किलोग्राम से कम वजन वाले उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित करने की है.
इसे श्रीहरिकोटा से झुके हुए (inclined) लॉन्च और कुलसेकरपट्टिनम (तमिलनाडु) से ध्रुवीय (polar) लॉन्च के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
समझौते के तहत क्या होगा?

इस करार के अनुसार,
पहले दो सालों में HAL तकनीक को आत्मसात (absorb) करेगा.
इसके बाद अगले 10 वर्षों तक HAL SSLV का उत्पादन करेगा.
HAL को नॉन-एक्सक्लूसिव और नॉन-ट्रांसफरेबल लाइसेंस दिया गया है, जिसमें डिज़ाइन, मैन्युफैक्चरिंग, क्वालिटी कंट्रोल, इंटीग्रेशन, लॉन्च ऑपरेशंस और पोस्ट-फ्लाइट एनालिसिस से जुड़ी संपूर्ण डाक्यूमेंटेशन, ट्रेनिंग और सपोर्ट शामिल है.
हस्ताक्षर समारोह में शामिल रहे दिग्गज
समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल थे- जयकृष्णन एस (CEO, HAL – बेंगलुरु कॉम्प्लेक्स), डॉ. ए. राजाराजन (निदेशक, VSSC), एम. मोहन (चेयरमैन, NSIL), राजीव ज्योति (डायरेक्टर – टेक्निकल, IN-SPACe)
इस मौके पर डॉ. डी. के. सुनील (CMD, HAL), डॉ. वी. नारायणन (चेयरमैन, ISRO), डॉ. पवन कुमार गोयनका (चेयरमैन, IN-SPACe) और कई वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं HAL निदेशक भी मौजूद रहे.
HAL की बड़ी जिम्मेदारी

समझौते के बाद HAL CMD डॉ. डी. के. सुनील ने कहा,
“HAL, IN-SPACe, ISRO और NSIL के साथ मिलकर SSLV तकनीक को आत्मनिर्भर बनाएगा और वैश्विक मानकों के अनुसार छोटे उपग्रह प्रक्षेपण सेवाएं प्रदान करेगा. SSLV न सिर्फ भारत के संचार, पृथ्वी अवलोकन, नेविगेशन जैसे क्षेत्रों की ज़रूरतें पूरी करेगा बल्कि भारतीय MSMEs, स्टार्ट-अप्स और इंडस्ट्री के लिए भी नए अवसर पैदा करेगा.”
क्यों है यह महत्वपूर्ण?
वैश्विक स्तर पर छोटे उपग्रहों की लॉन्चिंग की भारी मांग है. SSLV का बड़े पैमाने पर उत्पादन भारत को सस्ते और भरोसेमंद छोटे उपग्रह प्रक्षेपण में वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाएगा. यह भारत की अंतरिक्ष नीति में आत्मनिर्भरता और निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी मजबूती देगा.
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