Pakistan का डिजिटल जाल: विदेशी कंपनियों की मदद से खड़ा किया गया निगरानी और सेंसरशिप नेटवर्क

एमनेस्टी इंटरनेशनल की ताज़ा रिपोर्ट ने Pakistan के अंदर डिजिटल स्वतंत्रता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान सरकार ने चीनी, जर्मन, फ्रांसीसी, अमीराती और अमेरिकी कंपनियों की तकनीकी मदद से एक विशाल निगरानी और सेंसरशिप मशीन खड़ी की है, जो नागरिकों की हर ऑनलाइन गतिविधि पर नज़र रख रही है.
कैसे काम करता है यह नेटवर्क?
पाकिस्तान ने दो प्रमुख सिस्टम लागू किए हैं:
Web Monitoring System (WMS 2.0): चीन से आए इस सिस्टम की मदद से सरकार लाखों वेबसाइट्स ब्लॉक कर सकती है, VPN सेवाओं को रोक सकती है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित कर सकती है.
Lawful Intercept Management System (LIMS): जर्मनी और यूएई की तकनीक पर आधारित यह सिस्टम सीधे फोन कॉल, मैसेज और इंटरनेट गतिविधियों को ट्रैक करने की क्षमता रखता है.
इन प्रणालियों को बनाने और लागू करने में चीन की Gidgz Networks, जर्मनी की Utimaco, फ्रांस की Thales, अमेरिका की Niagara Networks और यूएई की DataFusion जैसी कंपनियों का योगदान बताया जा रहा है.
निजता और स्वतंत्रता पर खतरा

एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि इन तकनीकों का उपयोग सिर्फ सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि नागरिकों की आवाज़ दबाने और असहमति को खत्म करने के लिए हो रहा है.
एमनेस्टी की महासचिव अग्नेस कलामार्ड ने कहा,
“पाकिस्तान का यह सिस्टम नागरिकों की हर गतिविधि को ट्रैक कर रहा है. यह न केवल निजता का उल्लंघन है बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है.”
रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान का यह तंत्र एक साथ 40 लाख फोन कॉल्स को इंटरसेप्ट कर सकता है और लाखों इंटरनेट सेशंस को ब्लॉक कर सकता है.
अंतरराष्ट्रीय चिंता
इस खुलासे के बाद वैश्विक स्तर पर चिंता जताई जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का यह मॉडल चीन की इंटरनेट सेंसरशिप से मिलता-जुलता है और इससे पूरे दक्षिण एशिया में डिजिटल स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है.
यह मामला साफ़ करता है कि विदेशी कंपनियों की तकनीकी सप्लाई केवल कारोबार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर लोकतंत्र, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर पड़ रहा है. आमनेस्टी ने संबंधित कंपनियों से जवाबदेही तय करने और इस तरह की गतिविधियों से दूरी बनाने की मांग की है.
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