सूर्या रडार: भारत का स्टील्थ शिकारी, J-20 अब नहीं बच सकेगा!

सूर्या रडार

कल्पना कीजिए… आधी रात है… आसमान शांत है… लेकिन दूर क्षितिज के पार एक अदृश्य ख़तरा तेज़ी से भारत की सीमा की ओर बढ़ रहा है.

ना कोई आवाज़.. ना कोई सिग्नल…और ना ही कोई परछाई…

यह है स्टील्थ टेक्नोलॉजी का आतंक.. दुनिया के सबसे घातक फाइटर जेट्स — जो रडार की नज़रों से छिपकर वार करते हैं.

लेकिन अब… भारत के पास है एक ऐसा रडार जो चुप्पी भी “सुन” सकता है.

इसका नाम है — सूर्या.

यह केवल एक रडार नहीं…यह है स्टील्थ के ख़िलाफ़ भारत की तीसरी आँख.

एक ऐसी तकनीक… जो दुश्मन के भरोसे को ही उसकी कब्र बना सकती है. सूर्या रडार, भारत में विकसित एक मोबाइल, सॉलिड-स्टेट 3D रडार सिस्टम है. यह काम करता है VHF बैंड में – यानी ऐसी फ्रिक्वेंसी जो रडार-अवशोषक तकनीक को बेअसर कर देती है.

टारगेट को 360 किलोमीटर दूर से पहचान सकता है SURYA RADAR

ये 2 वर्ग मीटर के रडार क्रॉस सेक्शन वाले टारगेट को 360 किलोमीटर दूर से पहचान सकता है और स्टैरिंग मोड के ज़रिए दुश्मन की एक-एक हरकत पर पैनी नज़र रखता है. एक मिनट में 10 बार घूमने वाला इसका एंटीना देता है संपूर्ण 360 डिग्री कवरेज.

चाहे J-20 हो, ड्रोन हो या कोई और स्टील्थ प्लैटफॉर्म – अब कोई भी भारत की नज़रों से नहीं बचेगा. दो 6×6 मिलिट्री ट्रकों पर सवार यह रडार, किसी भी इलाके में तेज़ी से तैनात हो सकता है – चाहे पहाड़ हों या सीमाएं. दूर-दराज की चौकियों से लेकर युद्ध के मैदान तक, सूर्या का नेटवर्क बन सकता है भारत की पहली रेखा की निगरानी प्रणाली.

यह सिर्फ तकनीक नहीं… यह चेतावनी है — हर छुपे हुए दुश्मन के लिए.

जब सूर्या रडार को जोड़ा जाता है आकाश, QRSAM और आकाशतीर जैसी मिसाइल प्रणालियों से, तो यह बनाता है एक Multi-Layered Air Defense Shield – जिसमें पहचान भी है, जवाब भी है… और सटीक प्रतिक्रिया की रफ्तार भी

सूर्या वीएचएफ रडार को भारत के कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशंस, कंप्यूटर, इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनेसेंस (सी4आईएसआर) ढांचे में एक महत्वपूर्ण अतिरिक्त के रूप में देखा जाता है. C4ISR नेटवर्क का हिस्सा बनकर सूर्या देता है रीयल-टाइम डेटा फ्यूजन,

यानि अब भारत सिर्फ देखेगा नहीं..तुरंत प्रहार भी करेगा.

जब चीन अपने J-20 स्टील्थ फाइटर्स पाकिस्तान को देने की तैयारी में हो… और मेड इन तुर्कीए ड्रोन सीमा पर मंडरा रहे हो…तो सूर्या की ये तैनाती रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक बन जाती है. ऑपरेशन सिंदूर जैसी घटनाओं के बाद, सूर्या जैसे रडार दुश्मन की ‘चुप्पी’ को भी गूंज में बदल सकते हैं.

बेंगलुरु की एक कंपनी द्वारा विकसित, 200 करोड़ के अनुबंध के तहत भारतीय वायुसेना को पहला रडार मार्च 2025 में सौंपा गया है, बाकी 5 रडार भी जल्द ही डिलीवर किए जाएंगे. यह सिर्फ एक रक्षा उपकरण नहीं…यह है भारत की टेक्नोलॉजिकल स्वतंत्रता का प्रतीक.

अब दुनिया की स्टील्थ शक्ति अब भारत की दृष्टि से बच नहीं सकती. क्योंकि भारत के पास सूर्या रडार है – वो ब्रह्मास्त्र जो ‘अदृश्य’ को भी दृष्टिगत बना दे.

भारत अब सिर्फ सुनता नहीं… पहचानता है, ट्रैक करता है, और ज़रूरत पड़ने पर, नष्ट भी करता है.

और यही है — 21वीं सदी का भारत.

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