Pahalgam में आतंकी हमले के बाद इसकी टाइमिंग को लेकर क्यों हो रही है चर्चा, जानिए डिटेल में

पहलगाम में आतंकी हमला

22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने जब कायरतापूर्ण हमले में कई लोगों को मौत के घात उतार दिया तो सबसे ज्यादा चर्चा इसकी टाइमिंग को लेकर था.

इसमें कोई शक नहीं है कि इस घटना की टाइमिंग बताती है कि यह कायरतापूर्ण हमला पूरी प्लानिंग के साथ की गई है. जिस वक्त कश्मीर के पहलगाम में हमला हुआ उस समय अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और उनका परिवार भारत में था. जोकि एक अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति के लिहाज से बड़ी ख़बर थी. जो पाकिस्तान जैसे देशों को बिल्कुल पसंद नहीं आया.

इसके अलावा भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सऊदी अरब में मौजूद थे. जोकि एक महत्वपूर्ण दौरा था. सऊदी अरब में नरेन्द्र मोदी का जोरदार स्वागत हुआ.

एक ही समय में जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति भारत में हो और दुनिया के मुस्लिम देशों में सबसे सम्मानित देश सऊदी अरब में नरेन्द्र मोदी का स्वागत सम्मान हो रहा हो, तो भला पाकिस्तान को यह कैसे बर्दाश्त हो सकता था.

जब भारत के पीएम सऊदी में थे तो पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ तुर्कीए के दौरे पर थे. जहां पाकिस्तान के पीएम का स्वागत हो रहा था. तुर्की के राष्‍ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन और सऊदी प्रिंस के बीच इस्‍लामिक दुनिया का नेतृत्‍व करने के लिए प्रतिस्‍पर्द्धा जगजाहिर है. दोनों देश एक दूरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते है. ठीक उसी तरह भारत और पाकिस्तान के बीच भी कटू संबंध किसी से छुपी हुई नहीं है. ऐसे में पाकिस्तान ने भारत को दिखाने के लिए तो तुर्की ने सऊदी को दिखाने के लिए पाकिस्तान के पीएम का स्वागत किया.

तुर्की के राष्‍ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के बल पर पाकिस्तान उछल रहा है. तुर्की के राष्‍ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने पाकिस्तान का पक्ष कई मंचों पर लिया है. यहां तक की कई बार यूएनओ में कश्मीर मुद्दे का जिक्र कर चुके है. इसी का नतीजा था कि तुर्की को ब्रिक्स में भारत के विरोध के कारण शामिल नहीं किया गया. जबकि तुर्की की दिली ईक्षा थी कि वह ब्रिक्स का सदस्य बने.

तुर्की ने पाकिस्तान के लिए कई युद्धपोत का निर्माण किया है. जबकि वह पाकिस्तान के साथ मिलकर पांचवी पीढ़ी का फाइटर जेट बना रहा है. तुर्की ड्रोन इंडस्ट्री में नया खलाड़ी बनकर उभरा है. जहां 80 फीसदी बाजार पर उसका नियंत्रण है. यदि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुई तो चीन से ज्यादा खतरा तुर्की से भारत को होगा. क्योंकि तुर्की पूरी कोशिश करेगा पाकिस्तान की मदद का.. हालांकि चीन इस मामले में खुद को न्यूट्रल रखेगा. चीन भारत को मिल रहे समर्थन के आगे खुद को एक्पसोज नहीं कराएगा. उसे अच्छे से पता है कि एक भिखारी देश पाकिस्तान बाजार उपलब्ध नहीं करा पाएगा. जो बाजार उसे भारत उपलब्ध करा रहा है. तुर्की नाटो का सदस्य भी है. इस वजह से उसे लगता है कि कोई भी कुछ उसे नहीं कह पाएगा. जोकि एक बड़ी गलतफहमी है.

तुर्की ने लगातार डिफेंस, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और हथियारों के ज्वाइंट प्रोडक्शन के जरिए पाकिस्तान की डिफेंस इंडस्ट्री की मदद की है. जिससे पाकिस्तान को अपनी सेना को मजबूत करने में मदद मिली है. पाकिस्तान और तुर्की के बीच डिफेंस रिलेशन जहाज निर्माण, ड्रोन टेक्नोलॉजी और हथियारों की बिक्री तक फैला हुआ है. तुर्की ने पाकिस्तान को T129 ATAK हेलीकॉप्टर, MILGEM क्लास के कोरवेट और कई तरह के अन्य डिफेंस सिस्टम्स सौंपे हैं.

इसके अलावा ASELSAN और Roketsan जैसी तुर्की की हथियार कंपनियों ने पाकिस्तान की डिफेंस इंडस्ट्री के साथ मिलकर काम किया है. तुर्की की बदौलत पाकिस्तान ने पश्चिमी देशों के ऊपर से अपनी हथियारों की निर्भरता कम की है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने जब फरवरी में पाकिस्तान दौरे किया था उस वक्त भी कुछ अहम डिफेंस समझौते किए गए थे.

इसके अलावा भी तुर्की भारत को घेरने की कोशिश करता रहता है. तुर्की ने मालदीव को ‘टीसीजी वोल्कन’ नाम का युद्धपोत गिफ्ट किया है. यह जहाज करीब 58 मीटर लंबा और 7 मीटर चौड़ा है, और इसमें 45 लोगों का क्रू तैनात हो सकता है. इसके जरिए मालदीव अपने समुद्री इलाकों पर नजर रख सकेगा और जरूरत पड़ने पर अपनी रक्षा भी कर सकेगा. चूंकि मालदीव का भारत के साथ समुद्री सीमा को लेकर विवाद है, इसलिए यह आशंका भी जताई जा रही है कि मालदीव इस जहाज का इस्तेमाल उस इलाके में गश्त के लिए कर सकता है.

एक तरफ जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तुर्कीए के दौरे पर थे, वहीं पाकिस्तान के विदेशमंत्री व उप-प्रधानमंत्री इशाक डार 19 अप्रैल को अफगानिस्तान के दौरे पर पहुंचे थे.

जहां उन्होंने तालिबान के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की. यह मुलाकात ऐसे समय में हुआ है, जब तालिबान और पाकिस्तान के बीच हालात सामान्य नजर नहीं आ रहे है. ऐसे हालात में इशाक डार का अफगानिस्तान जाना पाकिस्तान का एक बोल्ड कदम है. पाकिस्तान बलुचिस्तान आतंकियों के समर्थन का आरोप तालिबान पर लगाता है. जबकि तालिबान इस बात से इन्कार करता रहा है. ऐसे में पाकिस्तान ने तालिबानी नेताओं के संबंध मधुर करने की कोशिश की है. भारत का अफगानिस्तान में अच्छा खासा निवेश है. यह तालिबान के शासन में आने से पहले से था. तालिबान जब सत्ता में आईं तब भी भारत का तालिबानी सरकार के साथ अच्छा संबंध रहा है.

पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री का अचानक अफगानिस्तान दौरा पर्दे के पीछ का बहुत कुछ बताती है. कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व के बीच भी सबकुछ ठीक नहीं है.

तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा और सिराजुद्दीन हक्कानी के बीच सत्ता संघर्ष किसी से छुपी नहीं है. दोनों चाहते है कि तालिबान पर उनका नियंत्रन रहे. इसी वजह से सिराजुद्दीन हक्कानी कई महीनों तक अफगानिस्तान से बाहर रहे. हक्कानी गुट को पाकिस्तान का खुला समर्थन हासिल है. वहीं, कंधार गुट पाकिस्तान की मुखालफत करता है.

हालांकि कुछ समय पहले ही सिराजुद्दीन हक्कानी वापस अफगानिस्तान आ गया है. ऐसे में पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री का अफगानिस्तान दौरे को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है. भारत की स्थिति अफगानिस्तान में काफी मजबूत है. लेकिन पाकिस्तान भरसक इस कोशिश में लगा है कि वह किसी भी स्थिति में भारत को अफगानिस्तान से बाहर निकाल सके.

पहलगाम की घटना का तु्र्की, तालिबान समेत दुनिया के लगभग सभी देशों और संस्थाओं ने निंदा की है. ऐसे में भारत का एक सही कदम पाकिस्तान को तोड़ सकता है, जो पहले ही घरेलू परिस्थितियों में जुझ रहा है. https://indeepth.com/2025/04/%e0%a4%86%e0%a4%96%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%ac-%e0%a4%a4%e0%a4%95-%e0%a4%b8%e0%a4%b9%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a4%ae-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a5%80/

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