सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद क्यों माना जाता है सर्वोच्च पद, जानिए कौन थे आदि शंकराचार्य

सनातन धर्म में शंकराचार्य का पद सर्वोच्च माना जाता है. भारत में शंकराचार्य पद की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी. आदि शंकराचार्य ने भारत में चार मठों की स्थापना की.

पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ, उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का शृंगेरी मठ और पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ शामिल है. 

इन चार मठों के प्रमुखों को शंकराचार्य कहा जाता है. इन मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने अपने चार प्रमुख शिष्यों को जिम्मेदारी सौंपी. तभी से भारत में शंकराचार्य परंपरा की स्थापना हुई है.

सनातन धर्म के मुताबिक, मठ वो स्थान है जहां गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा और ज्ञान की बातें बताते हैं. इन गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षा आध्यात्मिक होती है. एक मठ में इन कार्यों के अलावा सामाजिक सेवा, साहित्य आदि से संबंधित काम होते हैं.

कौन थे शंकराचार्य

केरल के कलाड़ी में नंबूदरीपाद ब्राह्मण शिवगुरु के घर में एक बेटा का जन्म हुआ. उसका नाम शंकर रखा गया वहीं बालक आगे चलकर शंकराचार्य कहलाया. बालक शंकर बचपन से ही कुछ अलग तरह के थे. 4 साल की उम्र में उन्होंने अपनी भाषा मलयालम सीख ली. वेदों को कंठस्थ कर लिया. अभी बालक शंकर कुछ ही साल के हुए की उनके पिता शिवगुरु की मौत हो गई. 5 साल की उम्र मे उपनयन संस्कार के बाद माँ ने उन्हें शिक्षा लेने गुरु के पास भेज दिया.

यहाँ गुरुकुल में आने के बाद बालक शंकर विद्या सीखने लगे. पर जिस शिक्षा को लेने में अन्य लोगों को 20 साल लग जाते थे, बालक शंकर ने उसे 2 साल में पूरा कर लिया. ये पहली बार था जब दुनिया उनके ज्ञान से परिचित हो रही थी. समय के साथ-साथ शंकर का मन संसार से हट रहा था. उनमें संन्यास लेने की ईक्षा जोर पकड़ रही थी. मां उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी. लेकिन एक घटना के बाद मां ने संन्यास की अनुमति दे दी. इसके बाद शंकराचार्य ने पूरे भारत में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया. शंकराचार्य के सिद्धांत को अद्वैत वेदांत कहा जाता है.

शंकराचार्य ने सुप्रसिद्ध ब्रह्मसूत्र भाष्य के अतिरिक्त ग्यारह उपनिषदों पर तथा गीता पर भाष्य की रचनाएं की एवं अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों स्त्रोत्र साहित्य का निर्माण कर वैदिक धर्म एवं दर्शन को पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए अनेक श्रमण, बौद्ध तथा हिन्दु विद्वानों से शस्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया. 32 साल की आयु में ही उन्होंने देह त्याग कर दिया.. 

उन्होंने चार मठों की स्थापना की. जिसके प्रमुख को आज भी शंकराचार्य कहा जाता है.

कैसे चुने जाते हैं मठ के शंकराचार्य?

शंकराचार्य बनने के लिए संन्यासी होना जरूरी है. संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, अपना पिंडदान और रुद्राक्ष धारण करना बेहद जरूरी माना जाता है. इसके अलावा तन मन से पवित्र, जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो, चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता होना चाहिए. इसके बाद शंकराचार्यों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की मुहर के बाद शंकराचार्य की पदवी मिलती है.

वर्तमान में चारों पीठों के शंकराचार्य 

 1. ओडिशा के पुरी में गोवर्धन मठ है, जिसके शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती हैं.

 2. गुजरात में द्वारकाधाम में शारदा मठ जिसके शंकराचार्य सदानंद सरस्वती हैं.

3. उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ है, जिसके शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हैं.

4. दक्षिण भारत के रामेश्वरम् में श्रृंगेरी मठ है, जिसके शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ हैं.

आदि शंकराचार्य ने चार मठों के अलवाा दसनामी संप्रदाय की भी स्थापना की थी.

जिनमें

1- गिरी, 2- पर्वत, 3- सागरइनके ऋषि भ्रगु हैं 

4- पुरी, 5- भारती,6-सरस्वती, इनके ऋषि शांडिल्य हैं ..

7- वन, 8- अरण्य  इनके ऋषि काश्यप हैं 

9-तीर्थ, 10- आश्रम .. इनके ऋषि अवगत हैं ..

शंकराचार्य मानते हैं कि संसार में ब्रह्म ही सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव और ब्रह्म अलग नहीं हैं. जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके ही अंदर विराजमान है. उन्होंने अपने ब्रह्मसूत्र में “अहं ब्रह्मास्मि” ऐसा कहकर अद्वैत सिद्धांत बताया है.

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